ऊंची दुकान फीके पकवान
प्रियांशु ने जल्दी से अपना ऑफिस का काम खत्म किया और अपनी कुर्सी से उठकर अपना बैग उठाकर दरवाजे की तरफ से बढ़ ही रहा था कि तभी उसका दोस्त नरेन्द्र उसे अपनी तरफ आते हुए दिखा। वह अपने केबिन में ये सोचकर रूक गया कि नरेंद्र हो ना हो किसी महत्वपूर्ण काम के लिए ही इतनी जल्दबाजी में उसकी तरफ आ रहा हो।
"यार! आज इतनी जल्दी जा रहा है? अभी तो तेरे निकलने में आधा घंटा बचा हुआ है।" नरेन्द्र ने प्रियांशु के हाथ में पकड़े बैग को देखकर कहा।
" आज घर दूसरे रूट से जाना है और उस रूट से घर जाने में आधा घंटा एक्स्ट्रा समय लगता है इसलिए थोड़ा जल्दी निकल रहा हूॅं।" प्रियांशु ने अपने हाथ में पकड़े बैग को कंधे पर रखते हुए जवाब दिया।
" कोई खास वजह है दूसरे रूट से जाने की क्योंकि मैं जहां तक जानता हूॅं तुझे तो शॉर्टकट बहुत पसंद है।" मुस्कुराते हुए नरेन्द्र ने प्रियांशु से पूछा।
" खास वजह ही तो है जिसकी वजह से मुझे उस तरफ जाना पड़ रहा है।" प्रियांशु ने कहा।
" मुझे भी बता! ऐसी कौन सी खास वजह है जिसके कारण तू अपनी पसंद को भी भूल गया है।" चुटकी लेते हुए नरेन्द्र ने प्रियांशु से पूछा।
" तू तो जानता ही है कि मेरी बीवी प्रेग्नेंट है और उसने आज सुबह ही मुझसे कहा है कि मुझे वैनिला केक खाने का मन कर रहा है, यदि तुम्हारे पास फुर्सत हो तो आते वक्त लेते आना, बड़े बुजुर्ग भी कहते हैं कि प्रेग्नेंट लेडीज को जिस वक्त जो खाने का मन हो उसे खिला देना चाहिए, नहीं तो पेट में पल रहे बच्चें पर उसका असर पड़ता है, यही सोच कर जल्दी निकल रहा था और उसकी मनपसंद वैनिला केक जिस दुकान में मिलती है वह हमारे इस ऑफिस से दूसरी तरफ है जहां पर जाने में मुझे वक्त लगेगा इसीलिए आज जल्दी जा रहा हूॅं।" प्रियांशु ने आखिरकार सही बात अपने दोस्त नरेन्द्र को बता ही दी।
" तुम्हारी बात भी बिल्कुल सही है, इस परिस्थिति में तुम्हारे साथ के साथ - साथ भाभी जी को जो खाने का मन करे वह तुम्हें उन्हें खिलाना चाहिए। यदि तुम बुरा ना मानो तो तुमसे एक बात कहना चाहता हूॅं। माना कि भाभी जी अपनी मनपसंद दुकान के ही वैनिला केक को खाती है लेकिन मेरी एक दोस्त ने कहा है कि अभी कुछ महीने पहले ही पास में ही एक बहुत अच्छा केक शॉप खुला है और उसमें ऐसा कोई भी फ्लेवर नहीं है जो नहीं मिलता हो। एक बार मैं उस दुकान में गया था, दिखने में भी दुकान बहुत अच्छी है। मैंने वहां की केक तो नही खाई लेकिन वहां की कुकीज मुझे पसंद आए। हो सकता है कि केक भी बहुत अच्छा हो क्योंकि दुकान तो ए वन है और इतनी बड़ी दुकान है तो चीजें भी स्वादिष्ट और ताजी ही होगी। मुझे तुमसे एक काम था, अगर बहुत जरूरी नहीं होता तो मैं कल ये काम तुमसे करवा लेता लेकिन आज ही इसे सर को देना है। ज्यादा समय नहीं लगेगा बस दस मिनट का वो काम है, उसके बाद हम उस केक शॉप में चलेंगे और भाभी की मनपसंद केक ले लेंगे साथ ही वहीं पास में एक कॉफ़ी शॉप भी है वहां पर एक-एक कॉपी भी पी लेंगे, मेरी तरफ से तुम्हारे लिए ट्रीट होगा ये।" नरेन्द्र ने प्रियांशु के सामने अपनी बात रखते हुए कहा।
प्रियांशु नहीं चाहता था कि ऑफिस के किसी काम में देरी हो इसीलिए वह नरेंद्र की बात मान गया, उस काम को करने में दस- ग्यारह मिनट का वक्त लगा, उसके बाद उसके पास नरेंद्र को वापस आने में भी पाॅंच मिनट लगा ही होगा। कुल मिलाकर पंद्रह मिनट बाद दोनों ऑफिस से बाहर निकले। दोनों ने अपनी बाइक निकाली और सड़क पर दौड़ा दी। नरेन्द्र ने ऑफिस से निकलते वक्त ही किस जगह पर जाना है प्रियांशु को बता दिया था।
दस मिनट भी नही बीते थे कि नरेन्द्र ने अपने पीछे चल रहे प्रियांशु को इशारे से बतलाया कि हमें यहीं पर रुकना है। अपनी गाड़ी को पार्क करते हुए प्रियांशु ने एक नजर केक शाॅप पर डाली तो देखा कि बाहर से तो दिखने में बहुत ही शानदार केक शॉप थी।
प्रियांशु ने मन ही मन सोचा कि अच्छा ही है यदि उसे अपनी बीवी की मनपसंद वैनिला केक यहीं पर मिल जाए तो उसके लिए तो और भी अच्छा है, एक तो उसे अपने ऑफिस से दूर दूसरी तरफ के रूट में ना जाना पड़ेगा और जब भी उसकी बीवी उसे केक लाने के लिए कहेगी उसे कोई दिक्कत भी नहीं होगी यहां तक कि समय की भी परेशानी अब उसके साथ नहीं होगी।
प्रियांशु और नरेंद्र अपने चेहरे पर मुस्कुराहट लाते हुए केक शॉप के अंदर घुस गए। वाकई में नरेन्द्र ने जो कहा था वह सच ही था। आज तक तो प्रियांशु ने भी इतने सारे फ्लेवर के केक इससे पहले कभी भी नहीं देखे थे जो वहां पर मौजूद थे।
नरेन्द्र वैनिला केक पैक करने के लिए कह ही रहा था कि प्रियांशु के दिमाग में यह बात आई कि क्यों ना इस फ्लेवर की एक-एक पेस्टी खा ली जाए? फिर क्या था प्रियांशु ने कहा कि पहले हमें खाने के लिए दे दें उसके बाद आप इसे पैक करना।
जब तक केक आता तब तक नरेन्द्र और प्रियांशु ऑफिस और फाइल की बातें करते रहे। भूख तो दोनों को ही लगी थी, केक के आते ही दोनों उसकी तरफ लपके। प्रियांशु ने जैसे ही केक का पहला निवाला अपने मुंह में रखा वैसे ही वह वाॅश बेसिन की तरफ भागा। गनीमत थी कि उसने नरेंद्र से हाथ धोने के लिए वाश बेसिन के बारे में पहले ही पूछ लिया था, नहीं तो शायद वह प्लेट में ही थूक देता।
"यार! हम सब चाहते हैं कि जो हम चीज खरीद रहे हैं वह अच्छी हो और उसी की तलाश में हम कहीं भी जाने के लिए तैयार रहते भी है जैसे कि आज मैं ऑफिस से दूसरी रूट में पड़ने वाले केक शॉप में जाने के लिए तैयार था लेकिन तू मुझे जिस दुकान में लेकर आया है वह अच्छी तो बिल्कुल भी नही है, यह दुकान सिर्फ अच्छी तरह से सजाई हुई बडी दुकान है और ऐसे ही दुकान के लिए यह कहा जाता है 'ऊंची दुकान फीके पकवान'। कुछ समझा! मैं क्या कहना चाह रहा हूॅं?" प्रियांशु ने अपनी कुर्सी पर बैठने के बाद नरेन्द्र की तरफ देखते हुए कहा।
" मैं समझ गया यार! मुझे भी इस दुकान की तरह ही ऊपर से सजी - संवरी बहुत अच्छी यह केक दिख रही है लेकिन जब मैं इसे खाया तो इसका स्वाद बहुत ही बेकार है। सच कहा तूने! 'ऊंची दुकान फीके पकवान' वाली कहावत इस जैसी दुकान पर ही पर्फेक्ट बैठते हैं अर्थात जो यह दिखाते हैं वैसी चीजें यहां पर होती नहीं है।" नरेन्द्र ने मुॅंह बनाते हुए कहा।
नरेंद्र और प्रियांशु बाहर से दिख रही सजी - संवरी और बाहर से अच्छी दिख रही दुकान में केक खरीदने के लिए तो चले गए थे लेकिन जब वह केक शॉप से वापस निकल कर ऑफिस से दूर दूसरी रूट में पड़ने वाले केक शॉप की तरफ जा रहे थे उन्हें पता चल गया था कि ऊंची दुकान फीके पकवान किसे कहते हैं।
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धन्यवाद 🙏🏻🙏🏻
गुॅंजन कमल 💓💞💗
अदिति झा
11-Feb-2023 12:16 PM
Nice 👌
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Varsha_Upadhyay
10-Feb-2023 09:18 PM
Nice 👍🏼
Reply
पृथ्वी सिंह बेनीवाल
09-Feb-2023 10:58 PM
बहुत खूब
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